Monday, May 17, 2010

हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है


हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है
हमारे शहर मैं पत्थर भी लाल होता है


मैं शोहरतों की बुलंदी पर जा नहीं सकता
जहाँ उरूज पर पहुँचो ज़वाल होता है

मैं अपने बच्चों को कुछ भी तो दे नहीं पाया
कभी कभी मुझे खुद भी मलाल होता है

यहीं से अमन की तबलीग रोज़ होती है
यहीं पे रोज़ कबूतर हलाल होता है

मैं अपने आप को सय्यद तो लिख नहीं सकता
अजान देने से कोई बिलाल होता है


पदोसीयों की दुकानें तक नहीं खुल्तीं
किसी का गाँव मैं जब इन्तिकाल होता है

---मुनव्वर राणा

1 comment:

  1. bahut behtareen MUNAWWAR SAHAB...mere pas tareef ke laeq koi lafz nahi hai...

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