HUM
Friday, May 21, 2010
Josh Saheb ki ek yaad
Aaj kal hamare chhote nawab bade Joshile geet gaa rahe hain aur hamein Josh sahab ki yaad aan padi to ek Ghazal aap sabon ki peshe nazar--
Soz e gham De K Mujhe Uss Ne Ye Irshaad Kiya
Ja Tujhe Kash-Ma-Kash-e-Dahar Se Azaad Kiya
Wo Karain Bhi Tou Kin Alfaz Main Tera Shikwa
Jin Ko Teri Nigah-e-Lutf Ne Barbaad Kiya
Dil Ki Choton Ne Kabhi Chain Se Rehnay Na Diya
Jab Chali Sard Hawa Maine Tujhe Yaad Kiya
Aisay Main,Main Teray Tajj Takaluf Pe Nisaar
Phir Tou Farmaye Wafa Aap Ne Irshaad Kiya
Iss Ka Rona Nahi Kyun Tumne Kiya Dil Barbaad
Iss Ka Gham Hain Bohat Dair Main Barbaad Kiya
Itna Masoon Hoon Fitrat se, Kali Jab Chatkhi
Jhuk K Maine Kaha, Mujhse Kuch Irshaad Kiya
Meri Har Saans Hai Iss Baat Ki Shahid e Maut
Maine Har Lutf K Mauqay Pe Tujhe yaad Kiya
Mujhko Tou Hosh Nahi Tumko Khabar Ho Shayad
Log Kehtay Hain K Tumne Mujhe Barbaad Kiya
Wo Tujhe Yaad Karay Jisne Bhulaya Ho Kabhi
Humne Tujh Ko Na Bhulaya Na Kabhi Yaad Kiya
Kuch Nahi Iss K siva Josh Hareefon Ka Kalaam
Vasal Ne Shaad Kiya Hijr Ne Nashaad Kiya ..
Monday, May 17, 2010
हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है
हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है
हमारे शहर मैं पत्थर भी लाल होता है
मैं शोहरतों की बुलंदी पर जा नहीं सकता
जहाँ उरूज पर पहुँचो ज़वाल होता है
मैं अपने बच्चों को कुछ भी तो दे नहीं पाया
कभी कभी मुझे खुद भी मलाल होता है
यहीं से अमन की तबलीग रोज़ होती है
यहीं पे रोज़ कबूतर हलाल होता है
मैं अपने आप को सय्यद तो लिख नहीं सकता
अजान देने से कोई बिलाल होता है
पदोसीयों की दुकानें तक नहीं खुल्तीं
किसी का गाँव मैं जब इन्तिकाल होता है
---मुनव्वर राणा
Saturday, May 15, 2010
Ek Bosa
Jab bhi choom leta hoon in haseen aakhon ko
Sau chirag andhere mein jhilmilaane lagte hain,
Phool kya, shagoofe kya, chaand kya, sitaare kya
Sab rakeeb kadmon par sar jhookaane lagte hain
Raks karne lagti hain mooraten ajanta ki
Muddaton ke labbasta gaar gaane lagte hain
Phool khilne lagte hain ujhde ujhde gulshan mein
Pyaasi pyaasi dharti par abar chhaane lagte hain
Lamhe bhar ko yeh duniya zulm chhor deti hai
Lamhe bhar ko sab patthar muskuraane lagte hain
Tuesday, May 11, 2010
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे
अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे
ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे
अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे
Monday, May 10, 2010
अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा
अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा
देखो मैने कंधे चौडे कर लिये हैं
मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं
और ढलान पर एडियाँ जमाकर
खडा होना मैने सीख लिया है
घबराओ मत
मै क्षितिज पर जा रहा हूँ
सूरज ठीक जब पहाडी से लुढकने लगेगा
मै कंधे अडा दूंगा
देखना वह वहीं ठहरा होगा
अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा
मैने सुना है उसके रथ मे तुम हो
तुम्हे मै उतार लाना चाहता हूं
तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो
तुम जो साहस की मुर्ति हो
तुम जो धरती का सुख हो
तुम जो कालातीत प्यार हो
तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो
तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो
तुम्हे मै उस रथ से उतार लाना चाहता हूं
रथ के घोडे
आग उगलते रहें
अब पहिये टस से मस नही होंगे
मैने अपने कंधे चौडे कर लिये है।
कौन रोकेगा तुम्हें
मैने धरती बडी कर ली है
अन्न की सुनहरी बालियों से
मै तुम्हे सजाऊँगा
मैने सीना खोल लिया है
प्यार के गीतो मे मै तुम्हे गाऊंगा
मैने दृष्टि बडी कर ली है
हर आखों मे तुम्हे सपनों सा फहराऊंगा
सूरज जायेगा भी तो कहाँ
उसे यहीं रहना होगा
यहीं हमारी सांसों मे
हमारी रगों मे
हमारे संकल्पों मे
हमारे रतजगो मे
तुम उदास मत होओ
अब मै किसी भी सूरज को
नही डूबने दूंगा
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